क्षरण: Difference between revisions
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हिंदू धर्म का क्षरण<br> | हिंदू धर्म का क्षरण<br> | ||
मूल कारण (उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल पर आधारित) | एक दिन मन्त्र तत्तव की आलोचना हो रही थी। प्रसंगवश गायत्री के बारे में चर्चा होने लगी। बाबा (परमहंस विशुद्धानंद) ने कहा - गायत्री की उपासना ब्राह्मण के लिए, ब्राह्मण्य रक्षा के लिए अत्यावश्यक है। आजकल ब्राह्मणों के बालक गायत्री-संध्या छोड़ चुके हैं, यह शुभ लक्षण नहीं है। ब्राह्मण अगर वास्तविक ब्राह्मण प्राप्त कर सके तो उसे अभाव-बोध क्यों होगा? | ||
- [https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=78 ज्ञानगंज], पृ. १८ | |||
मूल कारण (विशेषतया उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के अनुभभवों पर आधारित)<br> | |||
== माता पिता और घर के बड़ों द्वारा उपेक्षा == | == माता पिता और घर के बड़ों द्वारा उपेक्षा == | ||
अब घर के बड़े ही गुरुकुल में | अब घर के बड़े ही गुरुकुल भेजने में या घर पर सोलह संस्कारों विशेषतया उपनयन संस्कार (जनेऊ) में रुचि नहीं लेते। जनेऊ संस्कार 7-14 की आयु में हो जाना चाहिए, नहीं तो देर हो जाती है। | ||
== पुरोहित (यजमानी) == | == पुरोहित (यजमानी) == | ||
स्थानीय पुरोहित भी जब घर जाते हैं तो जनेऊ संस्कार या गुरुकुल की चर्चा नहीं करते।<br> | स्थानीय पुरोहित भी जब घर जाते हैं तो जनेऊ संस्कार या गुरुकुल की चर्चा नहीं करते।<br> | ||
अब तो गिरावट इतनी हो गई है कि बताने पर भी अधिकतर माता-पिता समय पर जनेऊ संस्कार नहीं कराते। विवाह के पिछले दिन जनेऊ की औपचारिकता निभा देते हैं। | अब तो गिरावट इतनी हो गई है कि '''बताने पर भी''' अधिकतर माता-पिता समय पर जनेऊ संस्कार नहीं कराते। विवाह के पिछले दिन जनेऊ की औपचारिकता निभा देते हैं। | ||
== पुजारियों का लोभ == | == पुजारियों का लोभ == |
Revision as of 12:12, 7 September 2024
हिंदू धर्म का क्षरण
एक दिन मन्त्र तत्तव की आलोचना हो रही थी। प्रसंगवश गायत्री के बारे में चर्चा होने लगी। बाबा (परमहंस विशुद्धानंद) ने कहा - गायत्री की उपासना ब्राह्मण के लिए, ब्राह्मण्य रक्षा के लिए अत्यावश्यक है। आजकल ब्राह्मणों के बालक गायत्री-संध्या छोड़ चुके हैं, यह शुभ लक्षण नहीं है। ब्राह्मण अगर वास्तविक ब्राह्मण प्राप्त कर सके तो उसे अभाव-बोध क्यों होगा? - ज्ञानगंज, पृ. १८
मूल कारण (विशेषतया उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के अनुभभवों पर आधारित)
माता पिता और घर के बड़ों द्वारा उपेक्षा
अब घर के बड़े ही गुरुकुल भेजने में या घर पर सोलह संस्कारों विशेषतया उपनयन संस्कार (जनेऊ) में रुचि नहीं लेते। जनेऊ संस्कार 7-14 की आयु में हो जाना चाहिए, नहीं तो देर हो जाती है।
पुरोहित (यजमानी)
स्थानीय पुरोहित भी जब घर जाते हैं तो जनेऊ संस्कार या गुरुकुल की चर्चा नहीं करते।
अब तो गिरावट इतनी हो गई है कि बताने पर भी अधिकतर माता-पिता समय पर जनेऊ संस्कार नहीं कराते। विवाह के पिछले दिन जनेऊ की औपचारिकता निभा देते हैं।
पुजारियों का लोभ
घर पर आने वाले पुजारियों का लोभ, आध्यात्मिक जानकारी की कमी, आदि देखकर लोगों का उत्साह कम हो जाता है।
- बहुतेरे पुजारी वेद को, गीता या रामचरितमानस से ऊपर बताने की गलती करते देखे जाते हैं। जबकि तत्त्व के क्रम में वेद मन की भूमि के स्तर के हैं।
- पहले सत्यनारायण की व्रत कथा होती थी। 2010 से नया चलन शुरू किया है - तीन हजार से पांच हजार लेकर किसी को भी रुद्राभिषेक में यजमान बना देते हैं। जबकि इसकी पात्रता दुर्लभ है।
स्कूली शिक्षा
मैकाले पद्धति की शिक्षा स्वतंत्रता के बाद भी चल रही है। इसमें हिंदू धर्म को मिथक बताने की ईसाई परंपरा चली आ रही है। बंदर की संतान आदि झूठी बातें भी पढ़ाई जाती रही हैं।
समुद्र में डूबी द्वारका नगरी मिल चुकी है, लेकिन इसको स्कूलों में इतिहास में नहीं पढ़ाया जाता।
रामसेतु भी मिल चुका है और इसे अठारह हजार वर्ष पुराना बताया गया है। इसे भी स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता।
फिल्म
हिंदी फिल्मों में उर्दू और इस्लामियों ने हिंदू धर्म का उपहास ही दिखाया है। मौलवी और पादरी को - स्वस्थ, दृढ़ चरित्र और नेता दिखाया जाता है। हिंदू ज्योतिषी, पुजारी को दुर्बल और लोभी दिखाया जाता है। इससे हिंदुओं का मनोबल कम होता है।
पिछले पचहत्तर सालों में कश्मीर फाइल और केरल स्टोरी को छोड़कर हमेशा मजहबी और ईसाईयों को श्रेष्ठ दिखाता है।
उदाहरण - जय भीम में क्रूर और हत्यारे ईसाई पुलिस इंस्पेक्टर एंथनीसामी को फिल्म में हिंदू "गुरुमूर्ति" नाम से दिखाया है।
समाचार
समाचार मे कम्यूनिस्टों और विदेशी ईसाई कंपनियों का प्रभाव है।
उच्चतर शिक्षा
यह अंग्रेजी श्रेष्ठता के झूठे आडंबर और झूठे इतिहास से भरी रहती हैं। हिंदू सभ्यता की अच्छी बातों को छुपाया जाता है।
सिविल सर्विस
परीक्षा की तैयारी में हिंदू निंदा और झूठे इतिहास से भरी पुस्तकों से ही पढ़ना पड़ता है। तैयारी करने वालों में हिंदू घृणा के बीज डाले जाते हैं।
राजनीति
कई पार्टियां तो स्पष्ट रूप से हिंदू-विरोधी हैं।
भाजपा हिंदू की परिभाषा तक स्वीकार नहीं करतीस लेकिन हिंदुओं का वोट और चंदा लेने के लिए दिखावा और छल करती है। इनका गौ, गंगा और गीता में कोई श्रद्धा नहीं है।
भगवान के अवतार श्रीराम को और सामाजिक लोगों - दोनों को "महापुरुष" बोलती है। इनका छल भोले-भाले लोगों में सफल है। कुछ लोग "अन्धों में काना राजा" समझकर भाजपा को वोट दे देते हैं।
समाधान
शूद्र वर्ण में पुरुषों और चारों वर्णों की स्त्रियों का जनेऊ संस्कार - साधारणतः नहीं होता। चौदह साल के बाद ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णों में भी जनेऊ संस्कार की मान्यता नहीं है।
इतने बड़े जनमानस के लिए जीवन की दिशा, साधना और मंत्र - तीनों संतवाणी में उपलब्ध है -
कर से करु दान मान, मुख से जपो रामनाम। वाही दिन आवैका, जाही दिन जाना है।। - रामभक्त सिद्ध महापुरुष कबीरदास
इसके अलावा घर-वापसी कर रहे मुस्लिम, ईसाई या अन्य इच्छुक लोगों के लिए भी यह उपलब्ध है।