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शक्ति ही अन्तर्मुख होने पर शिव है और शिव ही बहिर्मुख होने पर शक्ति है। | शक्ति ही अन्तर्मुख होने पर शिव है और शिव ही बहिर्मुख होने पर शक्ति है। | ||
शिवतत्त्व में शक्तिभाव गौण और शिवभाव प्रधान है - शक्तितत्त्व में शिवभाव गौण और शक्तिभाव प्रधान है। परन्तु जहाँ शिव और शक्ति दोनों एकरस हैं, वहाँ न शिव का प्राधान्य है और न शक्ति का। वह साम्यावस्था है। यही नित्य अवस्था है। यही तत्त्वातीत है। कोई कोई इसे सैतीसंवा तत्त्व कहते हैं। यही सबके चरम लक्ष्य है। शैवों के ये परम-शिव, शाक्तों की पराशक्ति और वैष्णवों के श्रीभगवान हैं। <ref> | शिवतत्त्व में शक्तिभाव गौण और शिवभाव प्रधान है - शक्तितत्त्व में शिवभाव गौण और शक्तिभाव प्रधान है। परन्तु जहाँ शिव और शक्ति दोनों एकरस हैं, वहाँ न शिव का प्राधान्य है और न शक्ति का। वह साम्यावस्था है। यही नित्य अवस्था है। यही तत्त्वातीत है। कोई कोई इसे सैतीसंवा तत्त्व कहते हैं। यही सबके चरम लक्ष्य है। शैवों के ये परम-शिव, शाक्तों की पराशक्ति और वैष्णवों के श्रीभगवान हैं। <ref>पुस्तक - कविराज प्रतिभा, 2016, प्रकाशक - सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, द्वितीय संस्करण, https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=2643, पृष्ठ २६२,२६३</ref> | ||
==सन्दर्भ== | ==सन्दर्भ== |
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