प्रत्यभिज्ञा-शास्त्र और त्रिपुरा-सिद्धान्त दोनों ही मतों में छत्तीस तत्त्व माने गये हैं। इनके परे जो है वह तत्त्वातीत है।
संसार इन्हीं छत्तीस तत्त्वों की समष्टि है। तत्त्वातीत से ही तत्त्वों का उद्भव होता है, इसलिए दोनों मूल में एक ही हैं।
इस विश्व में पैंतीस और छत्तीस संख्यक तत्त्व हैं, जिसका पारिभाषिक नाम शक्ति और शिव है, वह नित्य है।