स्वामी विवेकानंद गुरू की खोज में दो प्रश्न पूछतें थे
१. क्या आपने भगवान को देखा है?
२. क्या मुझे दिखा सकते हैं?
परमहंस रामकृष्ण ने पहले के उत्तर में - हां कहा था।
दूसरे के उत्तर में सामने बिठा कर अपने पैर के अंगूठे से इनके हृदय पर स्पर्श कर दिया था। विवेकानंद जी की आंखों के आगे प्रकाश ही प्रकाश हो गया था और वह कुछ देर के लिए अचेत हो गए थे।
यही दो कसौटियां गुरू बनाने के लिए प्रयोग उचित है।
भगवत प्रेम
यह कठिन सिद्धि है। सोपान परंपरा का विस्तार जानें।
निकटतम इतिहास में
प. गोपीनाथ कविराज जी ने निकटतम इतिहास के कई साधकों और सिद्धों का विस्तार से वर्णन किया है।