हिंदू धर्म का क्षरण

मूल कारण (उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल पर आधारित)

माता पिता और घर के बड़ों द्वारा उपेक्षा

अब घर के बड़े ही गुरुकुल में, सोलह संस्कारों विशेषतया उपनयन संस्कार (जनेऊ) में रुचि नहीं लेते। उपनयन संस्कार 7-14 की आयु में हो जाना चाहिए, नहीं तो देर हो जाती है।

पुरोहित (यजमानी)

स्थानीय पुरोहित भी जब घर जाते हैं तो उपनयन संस्कार या गुरुकुल की चर्चा नहीं करते।
अब तो गिरावट इतनी हो गई है कि बताने पर भी अधिकतर माता-पिता समय पर जनेऊ संस्कार नहीं कराते। विवाह के पिछले दिन जनेऊ की औपचारिकता निभा देते हैं।

पुजारियों का लोभ

घर पर आने वाले पुजारियों का लोभ, आध्यात्मिक जानकारी की कमी, आदि देखकर लोगों का उत्साह कम हो जाता है।

पहले सत्यनारायण की व्रत कथा होती थी। 2010 से नया चलन शुरू किया है - तीन हजार से पांच हजार लेकर किसी को भी रुद्राभिषेक में यजमान बना देते हैं। जबकि इसकी पात्रता दुर्लभ है।

स्कूली शिक्षा

मैकाले पद्धति की शिक्षा स्वतंत्रता के बाद भी चल रही है। इसमें हिंदू धर्म को मिथक बताने की ईसाई परंपरा चली आ रही है। बंदर की संतान आदि झूठी बातें भी पढ़ाई जाती रही हैं।

फिल्म

हिंदी फिल्मों में उर्दू और इस्लामियों ने हिंदू धर्म का उपहास ही दिखाया है। मौलवी और पादरी को - स्वस्थ, दृढ़ चरित्र और नेता दिखाया जाता है। हिंदू ज्योतिषी, पुजारी को दुर्बल और लोभी दिखाया जाता है। इससे हिंदुओं का मनोबल कम होता है।

पिछले पचहत्तर सालों में कश्मीर फाइल और केरल स्टोरी को छोड़कर हमेशा मजहबी और ईसाईयों को श्रेष्ठ दिखाता है।

उदाहरण - जय भीम में क्रूर और हत्यारे ईसाई पुलिस इंस्पेक्टर एंथनीसामी को फिल्म में हिंदू "गुरुमूर्ति" नाम से दिखाया है।

समाचार

समाचार मे कम्यूनिस्टों और विदेशी ईसाई कंपनियों का प्रभाव है।

उच्चतर शिक्षा

यह अंग्रेजी श्रेष्ठता के झूठे आडंबर और झूठे इतिहास से भरी रहती हैं। हिंदू सभ्यता की अच्छी बातों को छुपाया जाता है।

सिविल सर्विस

परीक्षा की तैयारी में हिंदू निंदा और झूठे इतिहास से भरी पुस्तकों से ही पढ़ना पड़ता है। तैयारी करने वालों में हिंदू घृणा के बीज डाले जाते हैं।

समाधान

आम जनमानस के लिए साधना, मंत्र और जीवन की दिशा

कर से करु दान मान, मुख से जपो रामनाम।
वाही दिन आवैका, जाही दिन जाना है।।
- संत कबीर