गुरू: Difference between revisions
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साधु दर्शन एवं सत्प्रसंग - [https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=230 भाग 1-2], [https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=231 भाग 3], [https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=2186 भाग 4] | साधु दर्शन एवं सत्प्रसंग - [https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=230 भाग 1-2], [https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=231 भाग 3], [https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=2186 भाग 4] | ||
== दोहे == | |||
'''गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागों पायं''' | |||
'''बलिहारी गुरू आपनो, गोविंद दियो मिलाय''' - संत कबीरदास |
Revision as of 13:34, 29 July 2024
स्वामी विवेकानंद गुरू की खोज में दो प्रश्न पूछतें थे
१. क्या आपने भगवान को देखा है?
२. क्या मुझे दिखा सकते हैं?
परमहंस रामकृष्ण ने पहले के उत्तर में - हां कहा था।
दूसरे के उत्तर में सामने बिठा कर अपने पैर के अंगूठे से इनके हृदय पर स्पर्श कर दिया था। विवेकानंद जी की आंखों के आगे प्रकाश ही प्रकाश हो गया था और वह कुछ देर के लिए अचेत हो गए थे।
यही दो कसौटियां गुरू बनाने के लिए प्रयोग उचित है।
भगवत प्रेम
यह कठिन सिद्धि है। सोपान परंपरा का विस्तार जानें।
निकटतम इतिहास में
प. गोपीनाथ कविराज जी ने निकटतम इतिहास के कई साधकों और सिद्धों का विस्तार से वर्णन किया है।
साधु दर्शन एवं सत्प्रसंग - भाग 1-2, भाग 3, भाग 4
दोहे
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागों पायं
बलिहारी गुरू आपनो, गोविंद दियो मिलाय - संत कबीरदास